आखिर, क्यों ? मनाया जाता है - रक्षाबंधन का त्योहार/ Why Celebrate Raksha-bandhan
रक्षाबंधन हिन्दुओं का पर्व है, इसे भाई और बहन के पर्व के नाम भी से जानते है। इस त्योहार को हम बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते है, इस दिन पूरी बाजार राखी से सजी होती है। भारत के कई हिस्सो में भी, जहाँ हिन्दू रहते है, इस पर्व को भाई और बहन के बिच मनाते हैं।
***रक्षाबंधन क्यों मनाते है????***
इस त्योहार के पीछे 5 पौराणिक और रोचक कथाएँ है -
1/5. माँ लक्ष्मी और राजा बलि ने प्रचलित की भाई और बहन की राखी --
राजा बलि बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु के अन्नय भक्त भी थे। एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया, इस दौरान उनकी परिक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार लेकर आये और दान में राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा
लेकिन उन्होने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान विष्णु उनकी परिक्षा ले रहे हैं। तीसरी पग के लिए उन्होंने भगवान विष्णु का पग अपने सर पर रखवा लिया फिर उन्होंने यचना की,
कि अब तो मेरा सब कुछ चला ही गया है - प्रभु ! आप मेरी विनती स्वीकार और मेरे साथ पाताल में चल कर रहे । भगवान ने भक्त की बात मान ली, बैकुन्थ् छोड़ कर पाताल चले गए। उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गई, फिर उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बन कर राजा बलि के पास पहुंची और राजा बलि को राखी बॉधी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिये कुछ भी नहीं है, इस पर लक्ष्मी अपने रूप में आ गयी और बोली की आपके पास तो साक्षात भगवान है, मुझे वही चाहिए मै उन्हीं को लेने आयी हु। इस पर राजा बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया, जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि
वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे यह चार महिना चतुर मास की रूप में जाना जाता है। जो एकादशी से लेकर देव उथानी एकादशी तक होता है।
लेकिन उन्होने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान विष्णु उनकी परिक्षा ले रहे हैं। तीसरी पग के लिए उन्होंने भगवान विष्णु का पग अपने सर पर रखवा लिया फिर उन्होंने यचना की,
कि अब तो मेरा सब कुछ चला ही गया है - प्रभु ! आप मेरी विनती स्वीकार और मेरे साथ पाताल में चल कर रहे । भगवान ने भक्त की बात मान ली, बैकुन्थ् छोड़ कर पाताल चले गए। उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गई, फिर उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बन कर राजा बलि के पास पहुंची और राजा बलि को राखी बॉधी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिये कुछ भी नहीं है, इस पर लक्ष्मी अपने रूप में आ गयी और बोली की आपके पास तो साक्षात भगवान है, मुझे वही चाहिए मै उन्हीं को लेने आयी हु। इस पर राजा बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया, जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि
वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे यह चार महिना चतुर मास की रूप में जाना जाता है। जो एकादशी से लेकर देव उथानी एकादशी तक होता है।
2/5. द्रौपदी और श्री कृष्णा का रक्षाबंधन
राखी से जुडी एक सुन्दर घटना महाभारत में भी उल्लेखनीय हैं, सुन्दर इसलिए क्योंकि ये घटना ये बताती है कि भाई बहन के स्नेह के लिए उनका सगा होना जरुरी नहीं होता है।
यह महाभारत के उस समय की बात है जब युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में रजसूय यग्य् करा रहे थे तो उस समय शिशुपाल् भी वही था और जब उसने भगवान श्री कृष्ण का 100 बार अप मान किया तो श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। जब सुदर्शन चक्र श्री कृष्ण के पास आया तो दिया। छोटी अंगुली थोड़ा सा कट गई तब वहाँ खड़ी द्रौपदी ने तुरंत ही अपने साडी का पल्ल्लु फाड़कर उनके अंगुली में बांध दिया।
श्री कृष्ण ने भी उन्हें वचन दिया इसके एक - एक धागे का ऋण चुकाएंगे। इसके बाद कौरवों ने जब द्रौपदी के चिरहरण का प्रयास किया तो श्री कृष्ण ने उनकी चिर बड़ा कर उसके चिर की मान रख ली।
कहते है कि जिस दिन द्रौपदी ने श्री कृष्ण के कलाइ में साडी का पल्ल्लु बांधा था वो श्रावन पूर्णिमा का दिन था ।
यह महाभारत के उस समय की बात है जब युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में रजसूय यग्य् करा रहे थे तो उस समय शिशुपाल् भी वही था और जब उसने भगवान श्री कृष्ण का 100 बार अप मान किया तो श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। जब सुदर्शन चक्र श्री कृष्ण के पास आया तो दिया। छोटी अंगुली थोड़ा सा कट गई तब वहाँ खड़ी द्रौपदी ने तुरंत ही अपने साडी का पल्ल्लु फाड़कर उनके अंगुली में बांध दिया।
श्री कृष्ण ने भी उन्हें वचन दिया इसके एक - एक धागे का ऋण चुकाएंगे। इसके बाद कौरवों ने जब द्रौपदी के चिरहरण का प्रयास किया तो श्री कृष्ण ने उनकी चिर बड़ा कर उसके चिर की मान रख ली।
कहते है कि जिस दिन द्रौपदी ने श्री कृष्ण के कलाइ में साडी का पल्ल्लु बांधा था वो श्रावन पूर्णिमा का दिन था ।
3/5. युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों को बांधी राखी -
महाभारत में राखी की एक और कथा है कि पांडवों को महाभारत का युद्ध जिताने में रक्षासूत्र का बड़ा ही योगदान है। जब युधिष्ठिर युद्ध में जा रहे थे तो उन्होंने श्री कृष्णा से कहा- है कान्हा ¡ मैं और मेरे सैनिक कैसे सभी विपत्तियों से पार हो सकते है, कोई उपाय बताएं। तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि वो सभी सैनिको के हाथ में रक्षासूत्र बाँध दे, इससे आपकी विजय सुनिश्चित हो जाएगी।
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युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और विजयी हुए, ये घटना भी सावन मास की पूर्णिमा तिथि को घटित हुआ। तब से इस दिन के पवित्र रक्षासूत्र बाँधी जाती है, इसलिए सैनिकों को इस दिन राखी बाँधी जाती है।
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4/5. पत्नी सचि ने इन्द्रदेव को राखी बाँधी थी -
भविष्य पुराण में एक कथा है कि वृत्तासुर से युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए इन्द्राणी सचि ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रवन पुर्निमा के दिन इंद्र की कलाई में बांधा, इस रक्षासूत्र ने देवराज इंद्र की रक्षा की फिर वे युद्ध में विजयी भी हुए। ये घटना भी सतयुग में ही हुई थी।
5/5. एक रोचक कहानी ऐसी भी है - राखी की।
ये कहानी सिकन्दर की है, जो विश्व् पर विजय प्राप्त करने निकला था और जब वह भारत निकला तो उसका सामना भारतिय राजा पुरू से हुआ। सिकन्दर बहुत ही वीर और बलशाली थे, उन्होंने युद्ध में सिकन्दर को धूल चटा दी। इस दौरान सिकन्दर की पत्नी को भारतीय त्योहार रक्षाबंधन के बारे में पता चला। तब उन्होंने अपनें पति की जान बख्शने के लिए पुरू को राखी भेज दिया।
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उन्हें ये देखकर बहुत आश्चर्य हुआ लेकिन राखी के धागो का सम्मान करते हुए, उन्होंने युद्ध के दौरान जब सिकन्दर पर वार करने के लिए अपना हाथ उठाया तो राखी देखकर थिथक गए और फिर उन्हें बंदी बना लिये गए। दूसरी ओर जब सिकन्दर ने पुरू के कलाइ में राखी देखा तो उसने भी अपना दिल दिखाया और उनको, उनका पूरा राज्य वापस कर दिया।
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rakhi 2020
ReplyDeleteThanks bro
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