** मैडम क्यूरी की जीवनी**
एक्स-रे (X-ray) मशीन की खोज
पोलैंड की धरती पर उत्पन्न मैडम क्यूरी कुछ उन गिनी चुनी महिलाओं में से एक है जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में अद्भुत योगदान दिया है। आज जिस एक्स-रे ( X-ray) मशीन से शरीर के भितरी अवयव की परीक्षा ली जाती है, इसके पीछे मैडम क्यूरी की अथक परिश्रम छिपा हुआ है।
आज हमें कार्य आसान और सरल लगता है। लेकिन इसके पिछे कितना कठिन परिश्रम किया गया है इसका अनूमान नहीं लगाया जा सकता है।
मैडम क्यूरी जिस घर में उत्पन्न हुईं थी वह कोई सम्पन्न परिवार नहीं था। उनका घर बड़ी मुश्किल से चलता था, इसी चिंता व दरिद्रता में उनकी माँ रोग से से पीडित होकर परलोक सिद्धार गई।
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क्युरी के पिता उस समय सरकारी नौकरी करते थे लेकिन उस पारिस्थि में भी उनके पिता की पगार आधी कर दी गयी क्योंकि सरकारी तानाशाही और गलत नितियों का विरोध कर रहे थे। यध्पि उनके पिता वहां के प्राध्यापक थे तथा फ्रेच, जर्मन, ग्रीक व इंग्लिश भाषाओँ ज्ञाता थे । बाद में उन्हें उनके पद से भी हटा दिया गया।
इसके फलस्वरूप उनकी आर्थिक हालात बिलकुल ही हिल गई। इधर घर गृहस्थी से लेकर पिता की विज्ञान संबंधित कार्योँ में हाथ बताने लगी। मैडम क्यूरी को उसी भौतिक विज्ञान में रूचि जागने लगी। जहाँ प्रयोगशाला में क्युरी प्रयोग को स्वाद से देखती और समझने की कोशिश करती। पिता ने भी अपनी बेटी को सीखाने के लिए उसे नियमित रूप से शिक्षा देना आरम्भ कर दिया।
मैडम क्यूरी की अथक प्रयास
अभी पोलैंड की राजनीतिक स्थिति डावाडोल हो रही थी जैसे जैसे पोलैंडवासीयो में देश प्रेम सम्बन्धी गतिविधिया बढ़ती जा रही थी। वैसे वैसे जरशाही का दमनचक्र भी तेज होता जा रहा था।
दिन - प्रतिदिन देश प्रेमियों से जेले भारती जा रहीं थीं। परिणाम स्वरूप मैडम क्यूरी ने अपने अभ्यास को बढ़ाने के लिए बर्मा छोड़ दिया और पेरिस पहुँच गई। पेरिस में उनकी मुलाकात वहां के प्रसिद्ध डाक्टर की सुपुत्री पिरी क्युरी से हुआ पीरि क्युरी 19 वर्ष की अवस्था में ही भौतिक विज्ञान की उच्च डिग्री प्राप्त कर रहीं थीं। दोनों ही बहुत युवा उत्साहित,परिश्रमी, तथा प्रतिभा सम्पन्न थे। समान रूचि होने से दोनों मिलकर विज्ञान के नविन अनुसंधान में बराबर प्रगति करने लगे। इसी घनिष्ठता के कारण ये दोनों ही विवाह- सूत्र में बंध गए।
वे घर के काम काज से लेकर अनुसंधान तक में एक दुसरे की सहायता किया करते थे। दोनों की अपनी ही एक दुनिया थी, वे इसी में मस्त रहते थे। अन्य लोगों के साथ वे सम्पर्क नहीं रखते थे, वे जहाँ रहते थे परस्पर अपनी वैज्ञानिक समस्याओं को भी सुलझाने की कोशिश करते थे, टूटे- फुटे छप्परों के नीचे उनकी अपनी प्रयोगशाला थी। वही ये दम्पत्ति अहनिर्श अपने प्रयोग करते रहते थे।
वे घर के काम काज से लेकर अनुसंधान तक में एक दुसरे की सहायता किया करते थे। दोनों की अपनी ही एक दुनिया थी, वे इसी में मस्त रहते थे। अन्य लोगों के साथ वे सम्पर्क नहीं रखते थे, वे जहाँ रहते थे परस्पर अपनी वैज्ञानिक समस्याओं को भी सुलझाने की कोशिश करते थे, टूटे- फुटे छप्परों के नीचे उनकी अपनी प्रयोगशाला थी। वही ये दम्पत्ति अहनिर्श अपने प्रयोग करते रहते थे।
यूरेनियम धातु की सबसे पहली खोज
उन्हें यह पता चल गया था कि यूरेनियम से कुछ अद्भुत रश्मिया फुटती है, बस इसके बाद वे लाल किरणों वाले पृथक तत्व के अनुसंधान में लग गए। उन्होंने एक टन कच्ची धातुओं को गलाकर, छाना और फिर साफ़ कर एक दिन उसमे से मात्र एक छोटी चम्मच जितना रेडियम प्राप्त कर लिया। लेकिन इसके पिछे क्युरी दम्पति का कितना पसीना बहा, इसका अनूमान लगाना मुश्किल होगा।
उनको 1 टन कच्ची धातुओं को गलाकर, 1 चम्मच रेडियम निकाले में चार साल लग गए और जब वह धातु तैयार हो गई तो उसमे से निकलने वाले किरणे इतनी तेज और शक्तिशाली थी कि रेडियम की ट्यूब छूने से पीरि की हाथ जल गयी।जब एक दिन मैडम क्यूरी ने जब नए धातु यूरेनियम के उपयोगिता विषय में 'पेरिस फैकल्टी आफ साइंस' के समक्ष भाषण दिया तो उनकी ख्याति देश भर में फ़ैल गई।
मैडम क्यूरी की आर्थिक स्तर में सुधार
सन 1903 में 'नोबल पुरस्कार' एक अन्य वैज्ञानिक और इन दोनों के बिच सामान्य रूप से दिया गया। इससे क्युरी दम्पति की आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार हुआ। अगले साल फ्रांसीसी सरकाकिया सारबोन में पिरी को उच्च पद पर नियुक्त किया और मैडम क्यूरी भी आपने पति के साथ 'चीफ आफ स्टाफ' बन गई।
इस समय मैडम मैरी क्युरी दो कन्याओ की माँ बन चुकी थीं क्युरी दम्पति की इस सुखमय गृहस्थी को एक दिन अकस्मात् जबरदस्त आधात पहुँचा। पीरि क्युरी सड़क पार करते हुए दुर्घटना के शिकार हो गए और उनकी वहीँ तत्काल मृत्यु हो गई। मैडम क्यूरी के जीवन पर दुख के बादल छा गए, उनके जीवन में गृहस्थी का जीवन समाप्त हो गया। यह 1906 की घटना थी, पति की आकस्मिक घटना से मैडम क्यूरी की जीवन में उदासी छा गई।
इस समय मैडम मैरी क्युरी दो कन्याओ की माँ बन चुकी थीं क्युरी दम्पति की इस सुखमय गृहस्थी को एक दिन अकस्मात् जबरदस्त आधात पहुँचा। पीरि क्युरी सड़क पार करते हुए दुर्घटना के शिकार हो गए और उनकी वहीँ तत्काल मृत्यु हो गई। मैडम क्यूरी के जीवन पर दुख के बादल छा गए, उनके जीवन में गृहस्थी का जीवन समाप्त हो गया। यह 1906 की घटना थी, पति की आकस्मिक घटना से मैडम क्यूरी की जीवन में उदासी छा गई।
पिरी के चले जाने से अनुसन्धान खाली खाली सा हो गया । सम्भवत इन्ही शब्दो से प्रेरित होकर उन्हें उस अनुसन्धान में और भी ध्यान दिया। और रेडियम की स्वरुप को स्पष्ट करने में सफल रही। उन्होने अपने उस वैज्ञानिक जिसके द्वारा उन्हें महान उप्लाब्धि मिली।
विस्तृत विवरण देते हुए 1000 पृष्ठ की एक पुस्तक लिखी, इस पुस्तक पर उन्हें 1911 में 'नोबल पुरस्कार' दिया गया। फ्रांसीसी सरकार ने एक नयी रेडियम की संस्था खोलकर मैडम मैरी क्युरी को उसका प्रधान नियुक्त किया गया। मैडम क्यूरी विश्व की महान महिला थी जो सदा ही विश्व के मानचित्र में अमर रहेगी।
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